(((( एक फरिश्ता ))))
मैं कईं दिनों से बेरोजगार था, एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ो लग रही थी, इस उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए।
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आज एक इंटरव्यू था, पर दूसरे शहर और जाने के लिए जेब में सिर्फ दस रूपये थे। मुझे कम से कम पांच सौ की जरूरत थी।
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अपने एकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो पड़ोसी की प्रेस मांग के तैयार कर पहन अपने योग्ताओं की मोटी फाइल बगल में दबा दो बिस्कुट खा के निकला,
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लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में तरबतर बस स्टेंड शायद कोई पहचान वाला मिल जाए।
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काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई न दिखा।
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मन में घबराहट और मायूसी थी, क्या करूंगा अब कैसे पहचूंगा।
पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठा था पास में ही एक फकीर बैठा था,
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उसके कटोरे में मेरी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थे,
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मेरी नजरे और हालत समझ के बोला, कुछ मदद कर सकता हूं क्या।
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मैं मुस्कुराता बोला, आप क्या मदद करोगे।
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चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लों। वो मुस्कुराता बोला।
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मैं चौंक गया उसे कैसे पता मेरी जरूरत मैने कहा "क्यों ...?"
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शायद आप को जरूरत है, वो गंभीरता से बोला।
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हां है तो पर तुम्हारा क्या तुम तो दिन भर मांग के कमाते हो । मैने उस का पक्ष रखते बोला।
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वो हँसता हुआ बोला, मैं नहीं मांगता साहब लोग डाल जाते है मेरे कटोरे में पुण्य कमानें,
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मैं तो फकीर हूं मुझे इनका कोई मोह नहीं, मुझे सिर्फ भुख लगता है, वो भी एक टाईम और कुछ दवाईंया बस,
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मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूं, वो सहज था कहते कहते।
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मैनें हैरानी से पूछा, फिर यहां बैठते क्यों हो..?
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आप जैसो की मदद करनें, वो फिर मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
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मै उसका मुंह देखता रह गया, उसने पांच सौ मेरे हाथ पर रख दिए और बोला, जब हो तो लौटा देना।
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मैं शुक्रिया जताता वहां से अपने गंतव्य तक पहुचा, मेरा इंटरव्यू हुआ, और सिलेक्शन भी ।
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मैं खुशी खुशी वापस आया सोचा उस फकीर को धन्यवाद दूं,
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मंदिर पहुचां बाहर सीढ़़ियों पर भीड़ थी, मैं घुस के अंदर पहुचा देखा वही फकीर मरा पड़ा था,
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मैरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी, मैने दूसरो से पूछा कैसे हुआ,
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पता चला, वो किसी बिमारी से परेशान था, सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था आज उसके पास दवाईंया नहीं थी और न उन्हैं खरीदने या अस्पताल जाने के पैसे ।
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मै आवाक सा उस फकीर को देख रहा था। भीड़ में से कोई बोला, अच्छा हुआ मर गया ये भिखारी भी साले बोझ होते है कोई काम के नहीं।...........
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मैं मन ही मन बोला कि वो भिखारी कहां था, वो तो एक फरिश्ता ही था..
(((an Angel )))))
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I was unemployed for many days, every rupee was costing like crores, I was in this uproar to get a job.
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There was an interview today, but there was only ten rupees in pocket to go to another city. I needed at least five hundred.
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Wash your only interview clothes in the night, prepare and put on a thick file of your qualifications next to your neighbor's press demand, eat biscuits and go out,
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Take the lift, on foot like a bus stand drenched in the scorching sun, maybe you can find someone recognizable.
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Even after standing for a long time, no one showed up.
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There was panic and despair in my mind, what will I do now how will I know.
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Reached the nearby temple, had darshan and was sitting on the stairs, a fakir was sitting nearby,
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There was more money in his bowl than my pocket and bank account,
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Understanding my eyes and condition, he said, can I help?
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I smiled and said, what will you help?
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If you want, keep all my money. He said smiling.
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I was shocked how did he know I needed to say "Why...?"
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Maybe you need to, he said seriously.
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If yes, but do you earn by demand throughout the day? I spoke in favor of him.
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He laughed and said, I do not ask, sir, people put them in my bowl to earn merit,
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I am a fakir, I have no attachment to them, I only feel hungry, that too for a time and some medicines, just
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I myself put all this money in the temple box, it was easy to say.
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I asked in surprise, then why are you sitting here..?
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Like you to help, he was smiling softly again.
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I kept looking at his face, he put five hundred on my hand and said, return it when you can.
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I thanked and reached my destination from there, I was interviewed, and also selected.
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I happily came back and thought I would thank that fakir.
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When I reached the temple, there was a crowd on the stairs outside, I reached inside and saw the same fakir was dead.
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There was no limit to my surprise, I asked others how it happened,
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It turned out that he was troubled by some disease, was alive only on medicines, today he did not have medicines nor money to buy them or go to the hospital.
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I was looking at that fakir speechless. Someone from the crowd said, it is good that he has died, these beggars are also burdensome, they are of no use.
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I said in my mind that where was that Beggar, he was just an Angel..
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