Sunday, June 20, 2021

Beggar, or an Angel

  (((( एक फरिश्ता ))))


मैं कईं दिनों से बेरोजगार था, एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ो लग रही थी, इस उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए। 

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आज एक इंटरव्यू था, पर दूसरे शहर और जाने के लिए जेब में सिर्फ दस रूपये थे। मुझे कम से कम पांच सौ की जरूरत थी।

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अपने एकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो पड़ोसी की प्रेस मांग के तैयार कर पहन अपने योग्ताओं की मोटी फाइल बगल में दबा दो बिस्कुट खा के निकला, 

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लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में तरबतर बस स्टेंड शायद कोई पहचान वाला मिल जाए। 

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काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई न दिखा।

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मन में घबराहट और मायूसी थी, क्या करूंगा अब कैसे पहचूंगा।

https://bit.ly/3iTf5n0

पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठा था पास में ही एक फकीर बैठा था, 

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उसके कटोरे में मेरी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थे, 

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मेरी नजरे और हालत समझ के बोला, कुछ मदद कर सकता हूं क्या।

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मैं मुस्कुराता बोला, आप क्या मदद करोगे।

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चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लों। वो मुस्कुराता बोला।

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मैं चौंक गया उसे कैसे पता मेरी जरूरत मैने कहा "क्यों ...?"

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शायद आप को जरूरत है, वो गंभीरता से बोला।

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हां है तो पर तुम्हारा क्या तुम तो दिन भर मांग के कमाते हो । मैने उस का पक्ष रखते बोला।

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वो हँसता हुआ बोला, मैं नहीं मांगता साहब लोग डाल जाते है मेरे कटोरे में पुण्य कमानें, 

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मैं तो फकीर हूं मुझे इनका कोई मोह नहीं, मुझे सिर्फ भुख लगता है,  वो भी एक टाईम और कुछ दवाईंया बस, 

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मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूं, वो सहज था कहते कहते।

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मैनें हैरानी से पूछा, फिर यहां बैठते क्यों हो..?

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आप जैसो की मदद करनें, वो फिर मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

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मै उसका मुंह देखता रह गया, उसने पांच सौ मेरे हाथ पर रख दिए और बोला, जब हो तो लौटा देना।

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मैं शुक्रिया जताता वहां से अपने गंतव्य तक पहुचा, मेरा इंटरव्यू हुआ, और सिलेक्शन भी । 

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मैं खुशी खुशी वापस आया सोचा उस फकीर को धन्यवाद दूं, 

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मंदिर पहुचां बाहर सीढ़़ियों पर भीड़ थी, मैं घुस के अंदर पहुचा देखा वही फकीर मरा पड़ा था, 

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मैरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी, मैने दूसरो से पूछा कैसे हुआ, 

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पता चला, वो किसी बिमारी से परेशान था, सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था आज उसके पास दवाईंया नहीं थी और न उन्हैं खरीदने या अस्पताल जाने के पैसे ।

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मै आवाक सा उस फकीर को देख रहा था। भीड़ में से कोई बोला, अच्छा हुआ मर गया ये भिखारी भी साले बोझ होते है कोई काम के नहीं।...........

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मैं मन ही मन बोला कि वो भिखारी कहां था, वो तो एक फरिश्ता ही था..



(((an Angel )))))

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I was unemployed for many days, every rupee was costing like crores, I was in this uproar to get a job.

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There was an interview today, but there was only ten rupees in pocket to go to another city. I needed at least five hundred.

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Wash your only interview clothes in the night, prepare and put on a thick file of your qualifications next to your neighbor's press demand, eat biscuits and go out,

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Take the lift, on foot like a bus stand drenched in the scorching sun, maybe you can find someone recognizable.

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Even after standing for a long time, no one showed up.

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There was panic and despair in my mind, what will I do now how will I know.

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Reached the nearby temple, had darshan and was sitting on the stairs, a fakir was sitting nearby,

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There was more money in his bowl than my pocket and bank account,

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Understanding my eyes and condition, he said, can I help?

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I smiled and said, what will you help?

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If you want, keep all my money. He said smiling.

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I was shocked how did he know I needed to say "Why...?"

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Maybe you need to, he said seriously.

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If yes, but do you earn by demand throughout the day? I spoke in favor of him.

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He laughed and said, I do not ask, sir, people put them in my bowl to earn merit,

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I am a fakir, I have no attachment to them, I only feel hungry, that too for a time and some medicines, just

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I myself put all this money in the temple box, it was easy to say.

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I asked in surprise, then why are you sitting here..?

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Like you to help, he was smiling softly again.

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I kept looking at his face, he put five hundred on my hand and said, return it when you can.

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I thanked and reached my destination from there, I was interviewed, and also selected.

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I happily came back and thought I would thank that fakir.

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When I reached the temple, there was a crowd on the stairs outside, I reached inside and saw the same fakir was dead.

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There was no limit to my surprise, I asked others how it happened,

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It turned out that he was troubled by some disease, was alive only on medicines, today he did not have medicines nor money to buy them or go to the hospital.

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I was looking at that fakir speechless. Someone from the crowd said, it is good that he has died, these beggars are also burdensome, they are of no use.

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I said in my mind that where was that Beggar, he was just an Angel..


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