आज जबकि भारत का पतन हो रहा है परन्तु हर कोई बहस में व्यस्त है...
-भारत-पाकिस्तान
-370-कश्मीर
-हिंदू-मुस्लिम
मन्दिर - मस्जिद
-सीएए, एनआरसी, एनपीआर आदि।
चलिए ज़रा ध्यान देते हैं कि भारत में दरअसल हो क्या रहा है...
भारत का वास्तविक डेटा और उसकी स्थिति आज की अर्थव्यवस्था के मद्देनजर...
👉-भारत का बाहरी ऋण... 500 + बिलियन डॉलर।
👉-वोडाफोन 50,000 करोड़ के नुकसान में है।
👉-एयरटेल को 23,000 करोड़ का नुकसान हुआ है।
👉-बीएसएनएल को 14,000 करोड़ का नुकसान हुआ है।
👉-MTNL को 755 करोड़ का नुकसान हुआ है।
👉-BPCL 750 करोड़ के नुकसान में है।
👉-SAILY को 286 करोड़ का नुकसान हुआ है।
👉-AIR India 4600 करोड़ के नुकसान में है।
👉- स्पाइस जेट 463 करोड़ के नुकसान में है।
👉-इंडिगो को 1062 करोड़ का नुकसान हुआ है।
👉-BHEL को 219 करोड़ का नुकसान हुआ है।
👉-इंडिया पोस्ट 15,000 करोड़ के नुकसान में है।
👉-जीएमआर इंफ्रा 561 करोड़ के नुकसान में है।
👉-यस बैंक 600 करोड़ के नुकसान में है।
👉-यूनियन बैंक 1190 करोड़ के नुकसान में है।
👉-पीएनबी बैंक 4750 करोड़ के नुकसान में है।
👉-एक्सिस बैंक 112 करोड़ के नुकसान में है।
पिछले साल से इंडिया पोल्ट्री किसान जगत में भारी नुकसान कंगाल होने की कगार पर हे..।
-जे पी समूह समाप्त हो गया।
-वीडियोकॉन दिवालिया।
-एयरसेल और डोकोमो मर चुके है।
-टाटा डोकोमो खराब हो चुका है।
-जेट एयरवेज बंद हो चुका है।
-हवाई अड्डे बिके: 5 हवाई अड्डे बेचे गए अडानी को।
_-रेलवे बिक्री पर है (150 ट्रेनों से
-विरासत किराये पर: लाल किले सहित कई विरासतें किराये पर।
-राष्ट्रीयकृत बैंक विलय: कई राष्ट्रीयकृत बैंकों का विलय हो गया है, कई शाखाएं सचमुच बंद हो गई हैं।
-एटीएम: एटीएम कमरों की संख्या में अभूतपूर्व कमी की गई है।
-सभी बैंक: भारी नुकसान झेल रहे हैं।
-36 सबसे बड़े कर्जदार देश से गायब है।
-कुछ कॉर्पोरेट्स को 2.4 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया गया।
-बीएसएनएल 54000 से अधिक नौकरियों में कटौती हो सकती है।
-ऑटो उद्योग मे 1 मिलियन डालर का नुकसान।
-मारुति सबसे बड़ी कार निर्माता ने उत्पादन में कटौती कर दी।
-कार इन्वेंटरी: कार फैक्ट्रियों में 55000 करोड़ रुपए की कार का स्टॉक पड़ा है, जिसमें कोई खरीदार नहीं है।
-आवास / घर : 30 प्रमुख शहरों में 12.76 लाख घर बिना बिके पड़े हैं।
-बिल्डर्स आत्महत्या: सभी परेशान, कुछ आत्महत्या कर रहे हैं, कोई खरीदार नहीं। लागत में वृद्धि (18% से 28% पर जीएसटी) के कारण निर्माण बंद हो गया।
-सीसीडी के संस्थापक वी जी सिद्धार्थ ने भारी कर्ज के कारण आत्महत्या की।_
-HAL कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं।
-ONGC भारत में सबसे अधिक लाभदायक कंपनी अब घाटे में चल रही है।
-OFB 1.5 लाख से अधिक कर्मचारियों और परिवारों प्रभावित
निगमीकरण के तहत।
-बिस्कुट कंपनियां: पारले-जी की तरह कुछ और कंपनी कर्मचारियों का भविष्य समाप्त करने के कगार पर है।
-बेरोजगारी: नोट बंदी के कारण 4 करोड़ लोग बेरोजगार।
-45 वर्षों में सबसे अधिक बेरोजगारी।
-घरेलू तनाव उच्चतम दर्जे पर हो गए हैं।
-भारत छोड़कर जाने वाले व्यक्तियों का उच्चतम रिकॉर्ड।
और भी बहुत कुछ हो सकता है। लेकिन मीडिया में कुछ भी नहीं दिखाया गया है। मीडिया भारत बनाम पाकिस्तान और हिंदू बनाम मुसलमानों पर बहस करने में व्यस्त है जो अब तक शांति से रह रहे थे... यह हमारा कर्तव्य है कि हम सभी को वास्तविक तस्वीर के बारे में बताएं और सचेत करें, और वो देखें ,जो हम देखना चाहते हैं ना कि वो देखें जो बिकाऊ मीडिया हमें दिखा रहा है...
ये सारी बाते सरकारी आंकड़ों पर है
इसको अधिक से अधिक साझा करें ताकि लोगों को सत्य का पता चले...
कम्बोज जी के बड़े बेटे का कहना है कि उनका लोकतंत्र पर से यकीन सन 88 में ही उठ गया था, जब हमारी स्कूल की छुट्टियां हुई और रात को खाने की मेज़ पर पापा ने पूछा - "बताओ बच्चों छुट्टियों में दादा के घर जाना है या नाना के ?"
सब बच्चों ने खुशी से हम आवाज़ होकर नारा लगाया - "दादा के ..."
लेकिन अकेली मम्मी ने कहा कि 'नाना के...।'
बहुमत चूंकि दादा के हक़ में था, लिहाज़ा मम्मी का मत हार गया और पापा ने बच्चों के हक़ में फैसला सुना दिया, और हम दादा के घर जाने की खुशी दिल में दबा कर सो गए ..।
अगली सुबह मम्मी ने तौलिए से गीले बाल सुखाते हुए मुस्कुरा कर कहा - "सब बच्चे जल्दी जल्दी कपड़े बदल लो हम नाना के घर जा रहे हैं...।"
मेंने हैरत से मुँह फाड़ के पापा की तरफ देखा, तो वो नज़रें चुरा कर अख़बार पढ़ने कि अदाकारी करने लगे...
बस मैं उसी वक़्त समझ गया था कि लोकतंत्र में फैसले आवाम की उमंगों के मुताबिक नहीं, बल्कि बन्द कमरों में उस वक़्त होते हैं, जब आवाम सो रही होती है...I
Hundreds of messages from bank employees were read. His agony is indeed terrible. Does anyone not fear how much political damage this batch of one million people can cause to him? For several days, after reading thousands of messages, it seemed that the employees and officers of the bank were going through severe mental stress. The suffocation has crossed the limits within them.
Today, when it is being talked about selling to banks, we remember why it was not happening when demonetisation was happening. When the bank workers stayed in the banks night and night to save people from a national crime committed with the country. Why doesn't the corporate captain talk about selling banks when he takes pressure from public sector banks to take loans. Then why was there no talk of selling to banks when the schemes made in the name of Prime Minister were to be passed on to the people?
A bank has asked its employees to buy shares of their bank. Even before, banks have been giving their shares to the employees, but this time they are being asked to buy it. In some cases, they are being forced to buy more shares than the salary capacity. Is this how the falling stock of banks is being saved? Zonal heads are pressuring whether the shares were bought or not.
The bank employee said that he has been forced to buy shares at a price more than three times the salary. For this, they are being over drafted. Loans are being given on their FDs and LICs so that they can buy shares worth one lakh and a half lakh rupees. Even sweepers earning 7000 are being pressured to buy shares worth Rs 10,000.
This is a scam of great extent. There is a kind of robbery. One can be given options to buy shares, how can they be told to buy them forcefully.
Today banks are not doing bank work. The job of the bank is to maintain the movement of money. Other works are being loaded on them. This is called cross selling. This cross selling has made the banks hollow.
Insurance, life insurance, two wheeler insurance, four wheeler insurance, mutual funds are being sold from banks counter. These have a 20% commission. Unless someone buys these products, his loan does not pass. For this, commissions from Branch Maneger to Managing Director are tied. In some cases, commissions to the above people go up to 10-20 crores. This has been shown by many messages.
It seemed right about a woman bank that why the commission money is not distributed equally among the employees of the entire branch or bank? Why does the top officer get more, the lower one gets less? Not only this, there is pressure from the Regional Office to sell these products. Daily report is sought. Refusal is reprimanded and the fear of transfer is shown.
Bank employees are also being forced to sell insurance schemes named after the Prime Minister. The farmer does not know but the insurance amount is being deducted from his account. Who directly benefited from this? To the insurance company. Wherever the insurance company used to give employment to thousands for these works, but the staff of the banks sucked the blood and sold their policy. Thank you that if the Hindu Muslim was driven or else these issues would have been discussed, then you would have known how your treasury has been robbed.
There is a severe shortage of staff in bank branches. New recruitment is not taking place. The unemployed are on the road. Where there should be 6 people, 3 people are working. Obviously, there is a mistake with the employees under pressure. In one case, two employees had to pay Rs 9 lakh from their own pockets. Think about their mental condition.
The banks did not have cashiers at the time of demonetisation. Everyone was engaged in the task of taking and delivering notes without a counting machine. If there was a difference in the count, a large number of bank employees made up their pockets. If only the number and amount of such people were known, their names would have been written in the martyrs of a fake war.
Bank employees are being asked to sell mutual funds as well. It is being explained to the common people that more money is in the fund than FD. One employee expressed apprehension in his letter that billions of rupees of savings of common people are being pumped into the stock market. The day this market collapses, common people will be robbed.
The infrastructure of banks is poor. Many branches do not even have toilets. There is no separate toilet for women. Is not cooler. Internet speed is very low. Banks are given speeds of 64 kbps and Digital India is beaten. Bank employees are under severe stress. They are falling prey to various diseases. Cervicals, slip discs, obesity are suffering from vitamin D deficiency.
Salary of bank employees is not being increased. The situation has become such that the peon of the central government is also earning more than the clerk of the banks. More clerks are working. In a city like Delhi, how the bank clerk runs a family in 19000, we never thought. Is frightening.
In hundreds of messages, bank staff officials have written that they work from 10 am to 11 pm. The holiday is not available. On Sunday also one has to come to meet the government's target. From now on, the District Officers also threaten the target. Threatens to be sent to jail.
हमारे लाखों बैंककर्मियों की दुनिया का भयावह दस्तावेज़
बैंक कर्मचारियों के सैंकड़ों मेसेज पढ़ गया। उनकी व्यथा तो वाक़ई भयानक है। क्या किसी को डर नहीं है कि दस लाख लोगों का यह जत्था उसे कितना राजनीतिक नुकसान पहुंचा सकता है? कई दिनों से हज़ारों मेसेज पढ़ते हुए यही लगा कि बैंक के कर्मचारी और अधिकारी भयंकर मानसिक तनाव से गुज़र रहे हैं। उनके भीतर घुटन सीमा पार कर गई है।
आज जब बैंकों को बेचने की बात हो रही है तो याद आया है कि तब क्यों नहीं हो रही थी जब नोटबंदी हो रही थी। जब बैंक कर्मचारी रात रात तक बैंकों में रूक कर देश के साथ किए एक राष्ट्रीय अपराध से लोगों को बचा रहे थे। कोरपोरेट का कप्तान तब क्यों नहीं बैंकों को बेचने की बात करता है जब वह दबाव बनाकर सरकारी बैंकों से लोन लेता है। तब बैंकों को बेचने की बात क्यों नहीं हुई जब प्रधानमंत्री के नाम से बनी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाना था?
एक बैंक ने अपने कर्मचारियों से कहा है कि अपने बैंक का शेयर खरीदें। पहले भी बैंक कर्मचारियों को अपने शेयर देते रहे हैं मगर इस बार उनसे ज़बरन ख़रीदने को कहा जा रहा है। कुछ मामलों में सैलरी की क्षमता से भी ज़्यादा शेयर ख़रीदने के लिए विवश किया जा रहा है। क्या इस तरह से बैंकों के गिरते शेयर को बचाया जा रहा है? ज़ोनल हेड के ज़रिए दबाव डाला जा रहा है कि शेयर ख़रीदे गए या नहीं।
उस बैंक कर्मचारी ने बताया कि सैलरी की क्षमता से तीन गुना ज़्यादा दाम पर शेयर ख़रीदने के लिए मजबूर किया गया है। इसके लिए उनसे ओवर ड्राफ्ट करवाया जा रहा है। उनकी एफ डी और एल आई सी पर लोन दिया जा रहा है ताकि वे एक लाख डेढ़ लाख रुपये का शेयर खरीदें। यहां तक कि 7000 कमाने वाले स्वीपर पर भी दबाव डाला जा रहा है कि वह 10,000 रुपये का शेयर ख़रीदे।
यह तो हद दर्ज़े का घोटाला चल रहा है। एक किस्म की डकैती है। किसी को शेयर ख़रीदने के विकल्प दिये जा सकते हैं, उनसे ज़बरन ख़रीदने को कैसे बोला जा सकता है।
आज बैंक बैंक का काम नहीं कर रहे हैं। बैंक का काम होता है पैसों की आवाजाही को बनाए रखना। उन पर दूसरे काम लादे जा रहे हैं। इसे क्रास सेलिंग कहते हैं। इस क्रास सेलिंग ने बैंकों को खोखला कर दिया है।
बैंकों के काउंटर से insurance, life insurance, two wheeler insurance, four wheeler insurance, mutual fund बेचे जा रहे हैं। इन में 20% कमीशन होता है। जब तक कोई इन उत्पादों को नहीं ख़रीदता है, उसका लोन पास नहीं होता है। इसके लिए Branch Maneger से लेकर प्रबंध निदेशक तक का कमीशन बंधा है। कुछ मामलों में ऊपर के लोगों को कमीशन 10-20 करोड़ तक हो जाते हैं। ऐसा कई मेसेज से पता चला है।
एक महिला बैंक की बात सही लगी कि कमीशन का पैसा पूरे ब्रांच या बैंक के कर्मचारियों में बराबर से क्यों नहीं बंटता है? क्यों ऊपर के अधिकारी को ज़्यादा मिलता है, नीचे वाले को कम मिलता है? यही नहीं इन उत्पादों को बेचने के लिए रीजनल आफिस से दबाव बनाया जाता है। डेली रिपोर्ट मांगी जाती है। इंकार करने पर डांट पड़ती है और तबादले का ख़ौफ़ दिखाया जाता है।
बैंक कर्मचारी प्रधानमंत्री के नाम से बनी बीमा योजनाओं को भी बेचने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं। किसान को पता नहीं मगर उसके खाते से बीमा की रकम काटी जा रही है। इसका सीधा लाभ किसे हुआ? बीमा कंपनी को। बीमा कंपनी कहां तो इन कामों के लिए हज़ारों को रोज़गार देती मगर बैंकों के स्टाफ का ही ख़ून चूस कर अपनी पॉलिसी बेच गईं। शुक्र मनाइये कि हिन्दू मुस्लिम की हवा चलाई गई वरना इन मुद्दों पर चर्चा होती तो पता चलता कि आपके खजाने पर कैसे कैसे डाके डाले गए हैं।
बैंक शाखाओं में स्टाफ की भयंकर कमी है। नई भर्ती नहीं हो रही है। बेरोज़गार सड़क पर हैं। जहां 6 लोग होने चाहिए वहां 3 लोग काम कर रहे हैं। ज़ाहिर है दबाव में कर्मचारियों से ग़लती होती है। एक मामले में दो कर्मचारियों को अपनी जेब से 9 लाख रुपये भरने पड़ गए। सोचिए उनकी क्या मानसिक हालत हुई होगी।
बैंकों में नोटबंदी के समय कैशियर नहीं थे। सबको बिना काउंटिग मशीन के नोट लेने और देने के काम में लगा दिया गया। गिनती में अंतर आया तो बड़ी संख्या में बैंक कर्मचारियों ने अपनी जेब से भरपाई की। काश ऐसे लोगों की संख्या और रकम का अंदाज़ा होता तो इनका भी नाम एक फर्ज़ी युद्ध के शहीदों में लिखा जाता।
बैंक कर्मचारियों से कहा जा रहा है कि आप म्युचुअल फंड भी बेचें। आम लोगों को समझाया जा रहा है कि एफ डी से ज़्यादा पैसा फंड में हैं। एक कर्मचारी ने अपने पत्र में आशंका ज़ाहिर की है कि आम लोगों की बचत का अरबों रुपया शेयर बाज़ार में पंप किया जा रहा है। जिस दिन यह बाज़ार गिरा आम लोग लुट जाएंगे।
बैंकों के बुनियादी ढांचे ख़राब हैं। कई शाखाओं में शौचालय तक ढंग के नहीं हैं। महिलाओं के लिए अलग से शौचालय तक नहीं है। कूलर नहीं है। इंटरनेट की स्पीड काफी कम है। बैंकों को 64 केबीपीएस की स्पीड दी जाती है और डिजिटल इंडिया का ढिंढोरा पीटा जाता है। बैंक कर्मचारी भयंकर तनाव में हैं। वे तरह तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। सर्वाइकल, स्लिप डिस्क, मोटापा, विटामिन डी की कमी के शिकार हो रहे हैं।
बैंक कर्मचारियों की सैलरी नहीं बढ़ाई जा रही है। हालत ये हो गई है कि केंद्र सरकार का चपरासी भी अब बैंकों के क्लर्क से ज़्यादा कमा रहा है। काम ज़्यादा क्लर्क क रहे हैं। दिल्ली जैसे शहर में बैंक का क्लर्क 19000 में कैसे परिवार चलाता है, हमने तो कभी सोचा भी नहीं। भयावह है।
सैंकड़ों मेसेज में बैंक कर्मचारियों अधिकारियों ने लिखा है कि सुबह 10 बजे से रात के 11 बजे तक काम करते हैं। छुट्टी नहीं मिलती है। रविवार को भी सरकार का टारगेट पूरा करने के लिए आना पड़ता है। ऊपर से अब ज़िलाधिकारी भी टारगेट को लेकर धमकाते हैं। जेल भेजने की धमकी देते हैं।
एक बैंक कर्मचारी ने वाजिब बात बताई। सरकारी बैंक के कर्मचारी जो राष्ट्रीय सेवा करते हैं क्या कोई दूसरा बैंक करेगा। क्या कोई प्राइवेट बैंक किसी ग़रीब मज़दूर का मनरेगा अकाउंट रखेगा? क्या प्राइवेट बैंक स्कूल फंड का खाता खोलेंगे?इन खातों में 200-300 रुपये जमा होता है। वृद्धा पेंशन से लेकर आंगनवाड़ी वर्क की सैलरी इन्हीं बैंकों में आती है जो 200 से 2500 रुपये से ज़्यादा नहीं होती है। जो ग़रीब बचा 1000 रुपये स्कॉलरशिप के लिए हर रोज बॅंक के चक्कर लगता है क्या वो 500 रुपये हर साल ATM चार्ज कटवा पाएगा।
उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक RRBs में शाखाओ की संख्या की दृष्टि भारत का सबसे बड़ा बैंक हैं और RRBs में व्यवसाय की दृष्टि से 8वाँ सबसे बड़ा बैंक हैं । लेकिन यहां मानव संसाधन की भयंकर कमी है। 1032 शाखाओं में से 900 के आसपास शाखों में सिर्फ 2 कर्मचारी मिलेंगे जिसमें एक कार्यालय सहायक दूसरा BM । जबकि हर शाखा में औसतन 12,000 खाते हैं। जिसमें ग्राहकों को सारी सुविधाएं देने की जिम्मेवारी अकेला कार्यालय सहायक का हैं BM KCC renewal और अन्य ऋण खाताओ के ऋण वसूली के नाम पर 10 से 5 बजे तक क्षेत्र भ्रमण में रहते हैं । जबकि बैंकिंग नियमानुसार सभी शाखाओं में makers-checker concept पर कार्य होनी चाहिये। इस प्रकार से पूर्णत इस नियम की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। बिहार हिन्दुस्तान में 20 फरवरी की खबर है कि युवा बैंक कर्मी ग्रामीण बैंक छोड़ रहे हैं। 15 ने इस्तीफा दे दिया है।
सरकार को तुरंत बैंकरों की सैलरी और काम के बारे में ईमानदारी से हिसाब रखना चाहिए। आवाज़ दबा देने से सत्य नहीं दब जाता है। वो किसी और रास्ते से निकल आएगा। बैंकों का गला घोंट कर उसे प्राइवेट सेक्टर के हाथों थमा देने की यह चाल चुनाव जीतवा सकती है मगर समाज में ख़ुशियां नहीं आएंगी। बहुत से लोगों ने अपने मेसेज के साथ बैंक कर्मचारियों की आत्महत्या की ख़बरों की क्लिपिंग भेजी है। पता नहीं इस मुल्क में क्या क्या हो रहा है। मीडिया के ज़रिए जो किस्सा रचा जा रहा है वो कितना अलग है। दस लाख बैंकरों के परिवार में चालीस लाख लोग होंगे। अगर चालीस लाख का सैंपल की पीड़ा इतनी भयावह है तो आप इस तस्वीर को किसानों और बेरोज़गार नौजवानों के साथ मिलाकर देखिए। कुछ कीजिए। कुछ बोलिए। डरिए मत।
नोट: यह लेख बैंकरों की बताई पीड़ा का दस्तावेज़ है। उन्होंने जैसा कहा, हमने वैसा लिख दिया। एक हिन्दू मुस्लिम सनक के पीछे देश के लोगों को क्या क्या सहना पड़ रहा है।
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